जोगेन्द्रनाथ मण्डल
पाकिस्तान के प्रथम कानून और श्रम मंत्री
जोगेंद्रनाथ मंडल पाकिस्तान के वास्तुकारों में एक प्रमुख व्यक्ति थे l इन्होंने पाकिस्तान के पहले कानून और श्रम मंत्री के साथ-साथ राष्ट्रमंडल और कश्मीर मामलों के मंत्री के रूप में कार्य किया था। इन्होने भारत की अंतरिम सरकार में पहले कानून का पोर्टफोलियो भी संभाला था। जोगेन्द्रनाथ मण्डल दलितों कि हित के लिए कार्य करते थे इसलिए दलितों का प्रतिनिधित्व करने वाले नेता के रूप में प्रतिष्ठित थे, योगेन्द्रनाथ मण्डल मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की
मांग के साथ सहभागी बन गये थे। उन्हें विश्वास था कि दलित जातियों को पाकिस्तान बनने का लाभ मिलेगा इसलिए वे पाकिस्तान की पहली कैबिनेट में शामिल हो गए थे। लेकिन इसके कुछ ही वर्षों बाद पाकिस्तान में दलितों होते हुए अत्याचारों और उनके जबरन धर्म पर्विवर्तन करवाने कि घटनाओं को देखकर वे कानून और श्रम मंत्री के पद से अपना इस्तीफा देने के बाद भारत लौट आये थे। जोगेन्द्रनाथ मण्डल ने दलितों के कल्याण की आकांक्षा से "दलित-मुस्लिम एकता" का सपना देखा था लेकिन पाकिस्तान बनने के कुछ समय के बाद ही उन्हें अपनी भूल का पता चल गया और उन्होंने अपनी इस गलती का जीवन भर प्रयाश्चित किया l
जोगेन्द्रनाथ मण्डल का जन्म 29 जनवरी 1904 को ब्रिटिश भारत के तत्कालीन बंगाल प्रेसीडेंसी (जिसे बंग-भंग के बाद पूर्वी बंगाल, स्वतंत्रता के बाद पूर्वी पाकिस्तान और वर्तमान में बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है) के बरिसाल जिले में हुआ था, जो नमसुद्र समुदाय से थे । जोगेन्द्रनाथ मण्डल बचपन से ही पढ़ाई में बहुत तेज थे, इन्होने अपनी पढ़ाई में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और अपनी प्रारंभिक शिक्षा को प्रथम श्रेणी पास किया। इसके बाद, 1929 में स्नातक होने के बाद उन्होंने कानून की पढ़ाई शुरू की और 1934 में उनकी कानून की डिग्री पूरी हुई। लेकिन जोगेन्द्रनाथ मण्डल ने इस डिग्री को अपना करियर या रोजगार शुरू करने के बजाय अपनी डिग्री को सामाजिक ढांचे में व्याप्त असमानताओं का सामना करने की गहन प्रतिबद्धता से प्रेरित होकर उन्होंने अपना पूरा जीवन वंचित समाज के सुधार और सामाजिक उन्नति के लिए समर्पित कर दिया।
जोगेन्द्रनाथ मण्डल ने 1937 के भारतीय प्रांतीय विधानसभा चुनावों के दौरान एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की । उन्होंने बंगाल विधान सभा में बाखरगंज उत्तर पूर्व ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा और कांग्रेस के प्रत्याशी सरल कुमार दत्ता को हराया जो कि जिला समिति के अध्यक्ष और स्वदेशी नेता अश्विनी कुमार दत्ता के भतीजे थे । इस अवधि के दौरान, जोगेन्द्रनाथ को सुभाष चंद्र बोस और शरत चंद्र बोस जैसी शख्सियतों से बहुत प्रेरणा मिली । 1940 में सुभाषचंद्र बोस के कांग्रेस से निष्कासन के बाद, जोगेन्द्रनाथ मण्डल "मुस्लिम लीग" के साथ जुड़ गए, जो उस समय एकमात्र अन्य प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी थी। इसके बाद उन्होंने मुस्लिम लीग के मुख्यमंत्री हुसैन शहीद सुहरावर्दी की कैबिनेट में मंत्री बने ।
जोगेन्द्रनाथ मण्डल ने "शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन" की बंगाल शाखा की स्थापना में डॉ. आंबेडकर का सहयोग किया । यह संगठन राजनीतिक प्रभाव कायम करने की आकांक्षा रखता था । जोगेन्द्रनाथ ने 1946 में बंगाल से संविधान सभा के लिए डॉ. आंबेडकर के चुनाव को सुनिश्चित करने में उस समय महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जिस समय डॉ. आंबेडकर को बम्बई से एक सीट हासिल करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था । जोगेन्द्रनाथ मण्डल ने भारत के संविधान के निर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया था, डॉ. आंबेडकर ने पत्राचार के माध्यम से उनकी सलाह मांगी।
उस राजनीतिक परिदृश्य के बीच जहां हिन्दू महासभा ने नामशूद्र समुदाय को न्यायलय में स्थान दिलाने की कोशिश की थी और प्रांत को उत्पीड़ित दलित और मुस्लिम आबादी के प्रभुत्व से चिन्हित किया गया था, जोगेन्द्रनाथ मण्डल ने सांप्रदायिक मामलों और कांग्रेस और मुस्लिम लीग से जुड़े राजनीतिक संघर्षों के बीच अंतर को समझा । 1946 के दंगों के बीच उन्होंने मुसलमानों के खिलाफ हिंसा में दलित लोगों की गैर-भागीदारी की
वकालत करते हुए पूर्वी बंगाल का दौरा किया। उनका मानना था कि उच्च जाति के हिंदुओं के साथ जुड़ने की तुलना में मुसलमानों के साथ जुड़ना दलितों के लिए अधिक फायदेमंद होगा । इसलिए उन्होंने मुस्लिम लीग को अपना समर्थन दिया ।
अक्टूबर 1946 में भारत की अंतरिम सरकार में मुस्लिम लीग के एकीकरण पर, जिन्ना ने जोगेन्द्रनाथ मण्डल को लीग के पांच प्रतिनिधियों में से एक के रूप में नामित किया। इसके बाद "किंग जॉर्ज VI" द्वारा नियुक्त लिए जाने पर उन्होंने निकाय के भीतर कानून विभाग संभाला।
जोगेन्द्रनाथ मण्डल ने खुद को मुस्लिम लीग के साथ जोड़कर पाकिस्तान के 96 संस्थापक व्यक्तियों में से एक के रूप में स्थापित किया । उनके उद्घाटन सत्र के दौरान, जो 15 अगस्त 1947 को भारत के विभाजन से कुछ समय पहले हुआ था, उसमें उन्हें अंतरिम अध्यक्ष के रूप में चुना गया था । विशेष रूप से जब मुहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल की भूमिका निभाने के लिए तैयार हुए, तो उन्होंने जोगेन्द्रनाथ मण्डल को सत्र की अध्यक्षता करने की जिम्मेदारी सौंपी, जो जोगेन्द्रनाथ मण्डल की दूरदर्शिता और नैतिक शुद्धता में उनके गहरे विश्वास को रेखांकित करता है। इसके बाद को बाद में पाकिस्तान के कानून और श्रम मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया।
लेकिन अफसोस की बात है कि मुस्लिम बहुमत के प्रभुत्व वाली नौकरशाही के भीतर लगातार अधीनता के कारण इस सम्मानित पद पर जोगेन्द्रनाथ मण्डल का कार्यकाल छोटा कर दिया गया। सितंबर 1948 में जिन्ना के निधन के बाद स्थिति और भी खराब हो गई । पुलिस द्वारा समर्थित मुस्लिम दंगाइयों द्वारा दलितों के खिलाफ किए गए अत्याचारों का सामना करते हुए, मण्डल ने अपना विरोध जताया। उनके इस सैद्धांतिक रुख के कारण उनके और पाकिस्तान के प्रधान मंत्री लियाकत अली खान के बीच मतभेद पैदा हो गए ।
1950 में मजबूर होकर भारत लौटे
सन 1950 में जोगेन्द्रनाथ मण्डल भारत वापस लौटने के लिए मजबूर हो गए । ऐसा माना जाता है कि ऐसा "पाकिस्तान में अपने खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी होने के कारण उन्होंने यह निर्णय लिया था" । साथ ही ऐसा भो कहा जाता है "कि उनका इकलौता बेटा जगदीशचंद्र मण्डल, जो उस समय कोलकाता में पढ़ रहा था, बीमार पड़ गया था और वह उसकी देखभाल के लिए भारत आ गए थे..." लेकिन आए थे तो वापस क्यों नहीं गए ? ।
उस समय पाकिस्तान के प्रधान मंत्री लियाकत अली खान को अपना इस्तीफा सौंपते हुए मण्डल ने दलितों और अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ अत्याचार करने के लिए जिम्मेदार दंगाइयों के खिलाफ निष्क्रियता को संबोधित करने में पाकिस्तानी प्रशासन की कथित विफलता को रेखांकित किया था । उनके त्याग पत्र में सामाजिक अन्याय और गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों के प्रति कथित पक्षपातपूर्ण रवैये के उदाहरण सामने आए । जोगेन्द्रनाथ मण्डल ने अपने पत्र में मुस्लिम लीग से जुड़ने और अपने इस्तीफे की वजह को स्पष्ट किया, जिसके कुछ अंश नीचे दिए हैं ।
जोगेन्द्रनाथ मण्डल ने अपने खत में लिखा:-
'बंगाल में मुस्लिम और दलितों की एक जैसी हालात थी । दोनों ही पिछड़े, मछुआरे, अशिक्षित थे । मुस्लिम लीग द्वारा मुझे आश्वस्त किया गया था कि लीग के साथ मेरे सहयोग से ऐसे कदम उठाये जायेंगे जिससे बंगाल की बड़ी आबादी का भला होगा । हम मिलकर ऐसी आधारशिला रखेंगे जिससे साम्प्रदायिक शांति और सौहादर्य बढ़ेगा । इन्हीं कारणों से मैंने मुस्लिम लीग का साथ दिया ।
1946 में पाकिस्तान के निर्माण के लिये मुस्लिम लीग ने 'डायरेक्ट एक्शन डे' मनाया । जिसके बाद बंगाल में भीषण दंगे हुए । कलकत्ता के नोआखली नरसंहार में पिछड़ी जाति समेत कई हिन्दुओ की हत्याएं हुई, सैकड़ों ने इस्लाम कबूल लिया । हिंदू महिलाओं का बलात्कार, अपहरण किया गया । इसके बाद मैंने दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया । मैने हिन्दुओ के भयानक दुःख देखे जिनसे अभिभूत हूँ लेकिन फिर भी मैंने मुस्लिम लीग के साथ सहयोग की नीति को जारी रखा ।
14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान बनने के बाद मुझे मंत्रीमंडल में शामिल किया गया । मैंने ख्वाजा नजीममुद्दीन से बात कर ईस्ट बंगाल की कैबिनेट में दो पिछड़ी जाति के लोगो को शामिल करने का अनुरोध किया । उन्होंने मुझसे ऐसा करने का वादा किया । लेकिन इसे टाल दिया गया जिससे मैं बहुत हताश हुआ ।
साथ ही साथ जोगेन्द्रनाथ मण्डल ने अपने पत्र में पाकिस्तान में दलितों पर हुए अत्याचार की कई घटनाओं के बारे में भी लिखा, 'गोपालगंज के पास दीघरकुल (Digharkul ) में मुस्लिम की झूटी शिकायत पर स्थानीय दलितों के साथ क्रूर अत्याचार किया गया । पुलिस के साथ मिलकर मुसलमानों ने मिलकर दलित समाज के लोगो को पीटा गया, घरों में छापे मारे गए । एक गर्भवती महिला की इतनी बेरहमी से पिटाई की गयी कि उसका मौके पर ही गर्भपात हो गया l
निर्दोष हिन्दुओ विशेष रूप से पिछड़े समुदाय के लोगो पर सेना और पुलिस ने भी हिंसा को बढ़ावा दिया । सयलहेट जिले के हबीबगढ़ में निर्दोष पुरुषो और महिलाओं को पीटा गया । सेना ने न केवल लोगो को पीटा बल्कि हिन्दू पुरुषों को उनके घर की महिलाओं को सैन्य शिविरों में भेजने के मजबूर किया गया जिससे वो सेना की कामुक इच्छाओं को पूरा कर सके । मैं इस मामले को आपके संज्ञान में लाया था, मुझे इस मामले में रिपोर्ट के लिये आश्वस्त किया गया लेकिन रिपोर्ट नहीं आई ।
खुलना जिले के कलशैरा में सशस्त्र पुलिस, सेना और स्थानीय लोगो ने निर्दयता से पुरे गाँव पर हमला किया । कई महिलाओं का पुलिस, सेना और स्थानीय लोगो द्वारा बलात्कार किया गया । मैने 28 फरवरी 1950 को कलशैरा और आसपास के गांवों का दौरा किया । जब मैं कलशैरा में आया तो देखा यहाँ जगह उजाड़ और खंडहर में बदल गयी । यहाँ करीबन 350 घरों को ध्वस्त कर दिया गया । मैंने तथ्यों के साथ आपको सूचना दी ।
ढाका में नौ दिनों के प्रवास के दौरान में दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया । ढाका नारायणगंज और ढाका चंटगाँव के बीच ट्रेनों और पटरियों पर निर्दोष हिन्दुओ की हत्याओं ने मुझे गहरा झटका दिया । मैंने ईस्ट बंगाल के मुख्यमंत्री से मुलाकात कर दंगा प्रसार को रोकने के लिये जरूरी कदमों को उठाने का आग्रह किया।
20 फरवरी 1950 को मैं बरिसाल पहुंचा । यहाँ की घटनाओं के बारे में जानकार में चकित था । यहाँ बड़ी संख्या में हिन्दुओ को जला दिया गया । उनकी बड़ी संख्या को खत्म कर दिया गया । मैंने जिले में लगभग सभी दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया ।
मधापाशा (Madhabpasha) में जमींदार के घर में 200 लोगो की मौत हुई और 40 घायल थे । एक जगह है मुलादी, एक प्रत्यक्षदर्शी ने यहाँ भयानक नरक देखा । यहाँ 300 लोगो का कत्लेआम हुआ । वहां गाँव में शवो के कंकाल भी देखे नदी किनारे गिद्द और कुत्ते लाशो को खा रहे थे । यहाँ सभी पुरुषो की हत्याओं के बाद लड़कियों को आपस में बाँट लिया गया ।
राजापुर में 60 लोग मारे गये और बाबूगंज में हिन्दुओ की सभी दुकानों को लूट आग लगा दी गयी ।
ईस्ट बंगाल के दंगे में अनुमान के मुताबिक 10000 लोगो की हत्याएं हुई । अपने आसपास महिलाओं और बच्चो को विलाप करते हुए मेरा दिल पिघल गया । मैंने अपने आप से पूछा, "क्या मै इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान आया था ?''
जोगेन्द्रनाथ मण्डल अपने पत्र में आगे लिखते हैं:- 'ईस्ट बंगाल में आज क्या हालात हैं? विभाजन के बाद 5 लाख हिन्दुओ ने देश छोड़ दिया है । मुसलमानों द्वारा हिन्दू वकीलों, हिन्दू डॉक्टरों, हिन्दू व्यापारियों और हिन्दू दुकानदारों के बहिष्कार के बाद उन्हें आजीविका के लिये पलायन करने के लिये मजबूर होना पड़ा । मुझे मुसलमानों द्वारा पिछड़ी जाति की लडकियों के साथ बलात्कार की जानकारी मिली है । हिन्दुओ द्वारा बेचे गये सामान की मुसलमान खरीददार पूरी कीमत नहीं दे रहे हैं । तथ्य की बात यह है पाकिस्तान में न कोई न्याय है, न कानून का राज इसीलिए हिन्दू चिंतित हैं ।
पूर्वी पाकिस्तान के अलावा पश्चिमी पाकिस्तान में भी ऐसे ही हालात हैं । विभाजन के बाद पश्चिमी पंजाब में 1 लाख पिछड़ी जाति के लोग थे उनमे से बड़ी संख्या को बलपूर्वक इस्लाम में परिवर्तित किया गया है । मुझे एक लिस्ट मिली है जिसमे 363 मंदिरों और गुरूद्वारे मुस्लिमों के कब्जे में हैं । इनमे से कुछ को मोची की दुकान, कसाईखानों और होटलों में तब्दील कर दिया है मुझे जानकारी मिली है सिंध में रहने वाली पिछड़ी जाति की बड़ी संख्या को जबरन मुसलमान बनाया गया है । इन सबका कारण एक है । हिंदू धर्म को मानने के अलावा इनकी कोई गलती नहीं है ।
जोगेन्द्रनाथ मण्डल ने अंत में लिखा:- 'पाकिस्तान की पूर्ण तस्वीर तथा उस निर्दयी एवं कठोर अन्याय को एक तरफ रखते हुए, मेरा अपना अनुभव भी कुछ कम दुखदायी और पीड़ादायक नहीं है । आपने अपने प्रधानमंत्री और संसदीय पार्टी के पद का उपयोग करते हुए मुझसे एक वक्तव्य जारी करवाया था, जो मैंने 8 सितम्बर को दिया था । आप जानतें हैं मेरी ऐसी मंशा नहीं थी कि मै ऐसे असत्य और असत्य से भी बुरे अर्धसत्य भरा वक्तव्य जारी करूं । जब तक मै मंत्री के रूप में आपके साथ और आपके नेतृत्व में काम कर रहा था मेरे लिये आपके आग्रह को ठुकरा देना संभव नहीं था पर अब मै इससे ज्यादा झूठे दिखावे तथा असत्य के बोझ को अपनी अंतरात्मा पर नहीं लाद सकता । मैंने यह निश्चय किया कि मैं आपके मंत्री के तौर पर अपना इस्तीफे का प्रस्ताव आपको दूँ, जो कि मैं आपके हाथों में थमा रहा हूँ । मुझे उम्मीद है आप बिना किसी देरी के इसे स्वीकार करेंगे । आप बेशक "इस्लामिक स्टेट" के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए इस पद को किसी को देने के लिये स्वतंत्र हैं ।
और इसके बाद जोगेन्द्रनाथ मण्डल भारत तो लौट आए लेकिन भारत लौटने पर जोगेन्द्रनाथ मण्डल को किसी भी राजनीतिक दल द्वारा स्वीकार नहीं किया गया । फिर भी वे अविचलित होकर पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) से आए हिन्दू शरणार्थियों के पुनर्वास में सहायता करने के अपने प्रयासों में लगे रहे, जिनकी आमद तेजी से पश्चिम बंगाल को प्रभावित कर रही थी । 5 अक्टूबर 1968 को उत्तर 24 परगना के बोनगांव में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई और सारा जीवन अपने वंचित बंधुओं के लिए खपा देने वाला अपने जीवन की एक गलती कि टीस को अपने दिल दबाये इस संसार से विदा हो गया ।
लेकिन जो भी हो जोगेन्द्रनाथ मण्डल भले ही डॉ. आंबेडकर सरीखे राजनैतिक और योग्य व्यक्ति रहे हों, उन्हें पाकिस्तान का आंबेडकर भले ही कहा जाता रहा हो फिर भी उनकी एक दलित-मुस्लिम एकता की विचारधारा उन्हें उस वंचित समाज में भी वह सम्मान नहीं दिला सकी जिसके वे हकदार थे। कारण...? कारण यही था की उन पर विश्वास करके वंचित समाज के जो लोग "दलित-मुस्लिम एकता" का नारा लगा कर उनके साथ पाकिस्तान गए थे या उस समय बने नवनिर्मित पाकिस्तान में ही रुक गए थे । उस वंचित समाज पर हुए अत्याचारों, हत्याओं और उनकी महिलाओं के अपहरण और बलात्कारों की घटनाओं ने उनकी सभी योग्यताओं और व्यक्तित्व को ख़त्म कर दिया था ।